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पढ़िये एक दिलचस्प प्रेम कहानी

इंदौर मेरा सबसे प्यारा शहर है में इंदौर, पहले कई बार आ चूका है पर कुछ दिनों के लिए लेकिन अब इस बार में इंदौर अपनी पडी पूरी करने आया हूँ आज...

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रविवार, 25 अगस्त 2013

पढ़िये एक दिलचस्प प्रेम कहानी

इंदौर मेरा सबसे प्यारा शहर है में इंदौर,
पहले कई बार आ चूका है पर कुछ दिनों के लिए लेकिन अब इस बार में इंदौर अपनी पडी पूरी करने आया हूँ आज २९ मार्च २००९ का दिन है में पहली बार इंदौर में ज्यादा समय के लिए आया था . मेरे मन में इंदौर को लेकर बहुत उत्सुकता थी बस से उतरा तो बहुत बड़ी-बड़ी बसे को जब मेने देखा तो देखते ही रह गया ये बड़ी बड़ी बसे क्या मस्त लग रही थी. बहुत दूर से बस मेरी तरफ आई और रुक गई मेने देखा ये तो बही बस है जिससे मुझे जाना है मेंने अपना सामान उठाया और बस में महिला सीट पर बैठ गया मेने देखा एक भाई अपने हाथ में एक मशीन लाकर मेरे पास आया और पीछे बैठने को कहा मेने उसकी बात मन ली .पीछे बैठने के कुछ देर बाद बो मशीन वाला भाई फिर आया और पूछने लगा कहा जाओगे मेने उसे अपनी मंजिल का पता बताया और पैसे देने पर उसने मुझे एक कागज का टुकड़ा दे दिया जिसे लोग टिकेट कहते है
सारा शहर बहुत खूबसूरत लग रहा था नया-नया मे सोच रहा था चाहे जो ओ एक दिन इंदौर का राजा बनकर रहूँगा
में सपने बहुत देखता था ऐसे सपने जिनका कोई आधार नहीं था
सपने देखना बुरी बात नहीं है पर सपने भी तो ऐसे देखना चाहिए जिनका कोई आधार हो केवल कल्पनाओ के के सपने तो कोई मुर्ख ही देख सकता है, उस समय में भी ऐसा ही मुर्ख था जो बिना किसी आधार के सपने देख रहा. मेरा बस स्टैंड से घर तक का सफर इन्ही सपनो के साथ पूरा हुआ में इंदौर में नया था तो मेरा ध्यान यहाँ की लडकियों पर बिलकुल भी नहीं गया
और जाता भी केसे काल्पनिक सपनो से फुर्सत मिले तब तो और कहीं ध्यान जायेगा और आखिर इन्ही सपनो ने मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा दिया में बस से उतरा और कुछ देर इधर उधर देखते रहा सब की सब बहुत ही सुंदर और मन को भाने वाला था. में अपनी बहन के घर गया और अपने भाई को वहीं आने को कह दिया अब आप सोच रहे होंगे की ये बहन और भाई कहा से आ गए तो आपकी जानकारी के किये बता दूँ मेरी बड़ी बहन और भाई इंदौर में ही रहते है मुहे अपनी बहन से बहुत प्यार है
में अपनी बहन के घर पहुँचा
मुझे यहाँ तक आते-आते शाम हो गई। में सीटी बस से उतरा और खुशी से एक हाथ में बेग उठाये गुन गुनाते हुए घर पहुच गया, यहाँ पर मेरा ही इंतजार हो रहा था। में जेसे ही दरवाजे पर पंहुचा सबके चेहरे खिल गए और में भी खुशियों से भर गया।वेसे भी मन में बहुत उत्साह था यहाँ आने का, अपने सपनों को पूरा करने का, हजारों विचार मन में गोता लगा रहे थे। जिन पर लगाम लगाना मेरे बस में न था। फिर भी में उन्हें अपने नियंत्रण में लेंने की नाकामयाब कोशिश मर रहा था वैसे भी ये मार्च का अंतिम सप्ताह था और गर्मी भी अपने रूप/स्वरूप में परिवर्तन कर रही थी। अक्सर गर्मियों में स्कूल जाने वाले बच्चे अपने किसी खास रिश्तेदार के घर महीने 2 महीने के लिए चले जाया करते है। और यहाँ भी अक्सर गर्मियों में नलों में पानी आना बन्द हो जाता है। तो लोग आस पास के मोहल्ले में स्थित ट्यूबवेल से पानी लाते थे।